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शनिवार, 8 मई 2021

कोरोना विषाणु तीसरी लहर : भय का वातावरण ❓

 सम्मानित और स्नेहिल मित्रों

आजकल कोविड की तीसरी लहर का अनदेखा भय व्याप्त हो रहा, अभी द्वितीय लहर ख़त्म भी नही हुई और समाचार चैनल वालों ने एक अनदेखे भय को वातावरण में घोलना शुरू कर दिया ।अच्छा इतना भय तो कभी नही होता जबकि सबको पता है कहीं जाते वक्त किसी भी वाहन का ब्रेक अनियंत्रित हो जाए या सड़कों पर लगे वृक्ष कभी भी ऊपर गिर जाएँ या कोई भवन अनायास गिर जाए और हम चपेट में आ जाएँ तो हमारा जीवित रह पाना मुश्किल होगा, पर हम कभी नही सोंचते। भयभीत क्यूँ नही होना चाहिए इसके बारे में मैं कुछेक बातें बताता हूँ:

प्रथम बिंदु: ये मैं मानता हूँ की प्रथम कोविड लहर की तुलना में द्वितीय लहर थोड़ी कष्टदायक अधिक रही, अधिक व्यक्ति इस बार संक्रमित हुए और कुछेक अपनों को हमने खोया भी, पर ये भी सत्य है जिनको ये  वैक्सिन लगी थी उन पर ये असर कम ख़तरनाक था (अपवादों को निकाल दें), सरकारें (राज्य और केंद्र) दोनों  वैक्सिनेशन पर समर्पित हैं जिनसे तृतीय लहर को हम कुछ हद तक नियंत्रण कर लेंगे ।

द्वितीय बिंदु: प्रत्येक बार हम ये क्यूँ सोचें कि इसके जीन (वंशानुगत सूत्रों) में बदलाव  संक्रमण को ख़तरनाक ही बनाएँगे, ये भी हो सकता है की कोई जीन में ऐसा भी बदलाव आए जो इसके संक्रमण की गति को कम कर दे या समाप्त कर दे (ऐसा बदलाव भी सम्भव है, उक्त बदलाव को जैवप्रोदयोगिकी वाले जीन थेरपी के वाहक वेक्टर में प्रयोग करते हैं) तो ये भी सम्भव है।

तृतीय बिंदु: अब जब हम अपने शत्रु यानि कोरोना को जब समझ गए हैं कि इसका प्रसार व संक्रमण अधिकतर नाक या मुँह के मार्ग से होता है तो हम इसके लिए मास्क का प्रयोग हमेशा करेंगे।

ये सब सोचकर अनदेखा भय अवश्य कम होगा,  फिर हमारी शृष्टि का उद्भव आज तो हुआ नही कई कल्प वर्ष व्यतीत हो गए, पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर कई युग बीत चुके पर हमारी वंश प्रणाली चलती जा रही । बस अब भोज्य पदार्थों का चयन प्रतिरक्षा प्रणाली को ताकत प्रदान करने वाले ही चुनें,योग प्राणायाम को दिनचर्या में ढालें और ईश्वर पर विश्वास करें सबकुछ पूर्ववत हो जाएगा।किसी विद्वान की सुंदर पंक्तियाँ जीवन दर्शन दर्शाती हुई

“हौंसले मत हार गिरकर वो मुसाफ़िर,ठोकरें इंसान को चलना सिखाती”

सकारात्मक विचारों का ही संग्रह करें,अपना ध्यान रखें व मास्क का प्रयोग करें🙏




रविवार, 2 मई 2021

कोरोनकाल और धैर्यरहित हम भारतीय

 एक तो कोरोना महामारी ऊपर से धैर्यरहित हम भारतीय, मुझे याद नही ये अवगुण हम भारतीयों ने कब से आत्मसाथ कर लिया, क्यूँकि पहले तो हम जगतगुरु कहलाते थे । हमने विश्व को सदमार्ग दिखाया,ज़्यादातर धर्म हमारी ही धरा से अपना प्रवाह लेकर समस्त विश्व को जीवन को जीने की शैली सिखाने के लिए जाने जाते है।

हाँ फिर उपनिवेश काल में ग़ुलाम रहे पर ग़ुलाम अधीर नही हो सकते हाँ उससे पहले सामंतवादी और मुग़लकाल में  कुछ जीवनमूल्यों का ह्रास हुआ, पर अब तो लोकतंत्र व गणतंत्र प्रणाली है जिसने हम सब एक समान अधिकार रखते।

फिर ये धैर्यहीनता साथ क्यूँ नही छोड़ रही, आजकल कोरोनाकाल में अस्पताल एक सीमित सुविधाओं से युक्त हैं जो आवश्यकता के अनुरूप अपर्याप्त है, इस महामारी में जब कोरोनाग्रस्त परिजन को किसी अस्पताल में दाख़िला नही मिल पाता तो हम चिकित्सकों से भिड़ जाते, उनके साथ शारीरिक व मौखिक दुर्व्यवहार पर उतर जाते, जो इस कोरोना से ग्रस्त लोगों का ही उपचार कर रहे थे । उन चिकित्सकों का अपराध क्या ? क्या ये कि इस महामारी में वो अपने परिजनों के साथ न रहकर अपने कर्तव्यपथ पर चल रहें, हम ये क्यूँ भूल जाते की वो भी किसी के पुत्र, पुत्री, पिता, पति और भाई हैं उनके भी आप जैसे रिश्ते हैं फिर भी वो मौत और जीवन के बीच खड़े होकर जीवन देने के लिए तत्पर रहते वो भी इतने असहज वस्त्रों और परिवेश में जहां शोक विषाद ,भयानक बीमारी और मौत का भय और उनके भी सकुशल वापसी का उनके बच्चों व परिवार का आपकी तरह ही इंतज़ार रहता है।  हाल में मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली में एक चिकित्सक ने लोगों को अपने सामने दम तोड़ते देख, असहाय अनुभव कर आत्महत्या कर ली, मानवता की मदद में इतना तनाव इनको भी होता ये कोई मशीन तो हैं नही ।

हमारी धैर्यहीनता का ही परिणाम, राजनीतिज्ञों ने इतना दबाव बना दिया गया कि एक वैक्सीन बनाने वाले संस्थान सिरम इन्स्टिटूट  आफ इंडिया के मुखिया आदर पूनावाला को ब्रिटेन जाना पडा और उनको जान पर ख़तरा लगने लगा, भारत सरकार में उनको Y श्रेणी की सुरक्षा भी प्रदान किया पर ये धैर्यहीनता हमारी पूरी व्यवस्था में व्याप्त हो गयी।

कभी कभी हम रेलवे के आरक्षण के लिए पंक्तिबद्ध होते तो टिकट का आरक्षण न मिल पाने पर उन पर हमला तो नही कर देते❓ क्यूँकि हमसबको ज्ञात है की ये एक निश्चित सीमा के बाद रेलगाड़ी में सीट तो जोड़ नही सकते ।वैसे हमको अन्य सुविधाओं व व्यवस्थाओं को समझना चाहिए और धैर्य का दामन नही छोड़ना चाहिए।

चिकित्सकों पर  दुर्व्यवहार अत्यंत दुःखद और निंदनीय है और न ही ये हमारी परम्परा का हिस्सा है।

शनिवार, 1 मई 2021

कोरोना के धुँधले अंधेरे के बीच चमकते कुछ उजाले

 राष्ट्र जहाँ कोरोना त्रासदी झेल रहा है वहीं लोग अपने किरदार को अपने अन्दाज़ में प्रस्तुत कर रहें हैं, मतलब आपदा में अवसर वाली निकृष्ट मानसिकता के लोग सक्रिय हैं तो कहीं महर्षि दधीचि जैसे शृष्टि के उपकार के लिए अपने शरीर तक को दान कर देने वाले लोग । “( महर्षि दधीचि ने अपने शरीर का दान कर दिया था जिससे उनकी हड्डियों द्वारा अस्त्र बनाए गए थे जिससे पीठ की हड्डी से वज्र और सिर से ब्रह्मशिर नामक अस्त्र बनाए गए थे और देवताओं ने उक्त अस्त्रों द्वारा असुरों पर विजय पायी थी )” हाँ तो पहले उजले पक्ष की बात करें,जो आज भी भारतीय सनातन परम्परा के लिए प्रेरणाश्रोत है,मैं बात करने जा रहा हूँ नारायण भाऊराव दाभाडकर जी की जो नागपुर के रहने वाले  उम्र 85वर्ष, हाल में जब कोरोना ग्रस्त हुए तो बेटी ने बड़ी मुश्किल से इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया, पर कुछ दिनों में वहीं एक युवा 40 वर्ष का जो कोरोना से ग्रस्त था अस्पताल आया उसकी पत्नी का रो रोकर बुरा हाल था  उसके छोटे बच्चे थे, पर कोई ऑक्सिजन सुविधा से सम्पन्न बेड ख़ाली नही था। उक्त अवसर पर सनातन परम्परा के उच्च आदर्शों से सुशोभित नारायण भाऊराव जी जो उसी अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे उन्होंने अपने बेड को उक्त मरीज़ को देने के लिए स्वेक्षा प्रस्तुत की,जबकि उनका भी ऑक्सिजन समुचित स्तर से नीचे चल रहा था, अस्पताल प्रशासन से कहा मैंने लगभग अपनी ज़िंदगी पूर्ण कर ली है,पर उक्त मरीज़ पर अभी ज़्यादा ज़िम्मेदारी हैं और अपना बेड दे दिया। जबकि ३दिन के बाद नारायण जी का निधन हो गया। इससे ये पता चलता है की अभी भी महर्षि की परम्परा के ध्वजवाहक हैं।

अब आते हैं, आपदा में अवसर की निकृष्ट मानसिकता के लोगों पर जैसे ही सरकार ने वैक्सिनेशन की घोषणा की आ गए वैक्सीन पंजीकृत का ढोंग रचकर ओटीपी द्वारा बैंक खाते को ख़ाली करने वाले लोग, ख़ैर ये तो कुछ भी नही अभी हाल में पता चला की रेमेडेसविर की फ़र्ज़ी कम्पनी चलाने लगे और अन्य दवाई पर नई फ़र्ज़ी रेमेडेसविर का चिप्पक. ये दवा पहले से तो कालाबाज़ारी का शिकार थी ही अब ये नया काम शुरू हो गया।

एक और दुखद पक्ष पता चला की नॉएडा में अन्य जगह भी ऐसा होगा, लोग अस्पताल से बातचीत करके (जिसे अपनी बोलचाल में सेटिंग कहते हैं) करके पहले से बेड पर स्वस्थ रहते हुए भी क़ाबिज़ हो गए (अंदेशा है कि अस्पताल में कोविड का पैसा राज्य सरकार देंगी तो अस्पताल मोटा पैसा वसूलने के लिए फ़र्ज़ी बिल द्वारा, कारनामे को कर सकती) जो भी हो या फ़र्ज़ी बेड क़ाबिज़ लोगों ने ये भी सोचा होगा कि भविष्य में यदि उनके  परिवार के लिए ग़र ज़रूरत होगी तो ये हमारी आरक्षित शय्यिका/बेड काम में आ जाएगा पर जिनको वास्तव में आवश्यकता है उनका क्या होगा? ये विचारणीय क्यूँ नही ?

अस्पताल अपनी  आय में मानवता का गला घोंटकर वृद्धि करने पर आमादा गर हैं तो क्यूँ ?जो भी वास्तविकता हो पर दोनों कारनामे घृणित ही कहे जाएँगे।

इसमें कोई शंका नही कि अभी भी अच्छे लोग हैं पर निकृष्ट मानसिकता का बोझ कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया, आशा है कि हमारे आदर्श नारायण भाऊराव जी ही हैं, महान  विभूति को सादर नमन 🙏 शायद सुनने में आया की वो राष्ट्रीय स्वयम् सेवक संघ के स्वयम्सेवक थे (संस्था जो मानवता और राष्ट्रीयता पर समर्पित) सदियाँ ऐसे देवदूतों को हमेशा याद रखेंगी।

अपना ध्यान रखें मास्क लगाएँ💐




शनिवार, 24 अप्रैल 2021

कोरोना महामारी के दौर में सुअवसर एवं कुअवसर की मानसिकता का द्वंद

 वैसे यह पहली बार नहीं है की आपदा में लोगों ने सुअवसर मानवता की सेवा के रूप में देखा और लोगों की अपेक्षा से ज्यादा सहायता की चाहे वह भुज का भूकंप हो या केदारनाथ ग्लेशियर की तबाही। भुज के भूकंप व केदारनाथ त्रासदी के दौरान लोगों ने पीड़ितों की मदद भोजन व आवास देकर किया साथ में कुछ संस्थाओं ने पीड़ितों को उनके घर तक पहुंचाया । ऐसी मानसिकता जो सही मायने में मानवता को परिभाषित करती है का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, पर इन दोनों घटनाओं में कुछ लोगों ने कुछ ऐसे कारनामें किये, जो उनकी विक्षिप्त मानसिकता को परिलक्षित कर गयी, लोगों ने पीड़ितों को भुज व केदारनाथ त्रासदी में लूटा, मृत शरीरों से उनके पहने हुए स्वर्ण आभूषणों को अपनी गिद्ध मानसिकता के कारण नोच कर बलात् अपना बना लिया। मुझे याद आती है, एक घटना जिसमें भुज भूकंप के दौरान किसी मकान से एक महिला का मृत शरीर निकाला जा रहा था और पुलिस वालों ने उक्त महिला द्वारा पहने हुए गहनो को निकालकर उस परिवार के एकमात्र बचे हुए वृद्ध पुरुष को देने चाहे, परंतु वह लेने से बार-बार मना करता रहा । जब इसका कारण पूछा गया तब उस वृद्ध ने जवाब दिया यह गहने मैंने भी किसी डैम की त्रासदी के दौरान मृत शरीरों से ही छीने थे, जिन्होंने मुझे भी आज उसी अवस्था में पहुंचा दिया,कृपा करके यह मुझे मत दीजिए। ऐसी मात्र यह पहली घटना नहीं होगी, जिसमें लोगों ने अपने द्वारा किए गए को कुकर्मों का पश्चाताप किया,जो बाद में समाज को एक राह दिखाते हैं।

कुछ ऐसा ही वर्तमान में कोरोना त्रासदी के समय में भी दृष्टिगोचर हो रहा है जहां कोई मुंबई का व्यक्ति अपनी बड़ी कार का विक्रय कर देता है लोगों को महज ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए, तो कहीं सोनू सूद जैसा व्यक्ति लोगों को उनके प्रदेश में भेजने का बीड़ा उठाता है,तो कहीं बनारस में रोटी मैन बनकर लोगों का पेट भरता है, तो दक्षिण में कोई राइसमैन (चावल वितरण सेवा) उभरता है, यही नहीं देश के कई रेलवे स्टेशनों पर निशुल्क खाने पीने की व्यवस्था भी देखने को मिलती है। लेकिन उपरोक्त दैवीय मानसिकता के अतिरिक्त कुछेक लोग अस्पतालों में सामान्य सैय्याओं के शुल्क सामान्य से 10 गुना बढ़ा देते हैं, जो बेड ₹300 प्रतिदिन के शुल्क पर उपलब्ध होते थे उनको आज 3000 से ₹5000 तक पर आवंटन, और ऑक्सीजन व वेंटीलेटर सम्पन्न शायिकाओं/बेड के शुल्कों में अनापेक्षित वृद्धि से अपने कमाने का अवसर समझकर, अपनी कुलषित मानसिकता का परिचय दे रहें हैं। यहां एक पक्ष अपनों पर आए संकट के लिए अपना सबकुछ निछावर कर देने पर आमादा हैं, तो वहीं कुछ लोग उसी विक्षिप्त मानसिकता से अपनों के लिए कल्पनातीत सपने बुन रहें, पर क्या वह कल्पना से बुने हुए सपने कभी वास्तविक धरातल पर सुख दे पाएंगे ? यह एक यक्ष प्रश्न होगा, जिसका जवाब समय जरूर देगा हां, उसमें विलंब हो सकता है, क्योंकि कभी लूट की संपत्ति पर बनामहल सुख नहीं दे सकता, ऐसा इतिहास अतीत से उजागर करता चला आ रहा है l यह विक्षिप्त मानसिकता केवल यही नहीं दृष्टिगोचर होती है, बल्कि अनावश्यक रूप से लोगों द्वारा ऑक्सीजन व अन्य दवाइयों का संग्रहण, जो शायद उनकी आवश्यकता से भी परे है, और मौजूदा समय में किसी अन्य को इसकी सख्त जरूरत है पर उस तक अब पहुंच नहीं सकती या कई भंडारण और वितरकों द्वारा उनके दामों में दस गुना वृद्धि करके कालाबाजारी पर आमादा हैं।

इसके अतिरिक्त प्रतिदिन जरूरतों में आने वाली वस्तुएं जैसे सब्जियां,नींबू, संतरे फल आदि आजकल की कीमतों में दो से कई गुना वृद्धि भी देखने को मिल रही है, जो कुछ राक्षसी प्रवृत्तियों वी मानसिकता का परिचायक बन गई हैं। क्या इस समय की की गई लूट हमारे जीवन में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकती है, मेरी नजरों में तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि ये लूट के पैसे चंददिनो की बाह्य खुशी दे सकते हैं, जो आत्मा पर महज एक आवरण चढ़ाकर ही महसूस कर सकते हैं।

उक्त विक्षिप्त मानसिकता व सहृदय मानसिकता के बीच का द्वंद सदियों से चला रहा है, पर जिन्होंने इतिहास से सबक नहीं लिया उनका आजका लूट का सुअवसर निश्चित रूप से कल का कुअवसर बनेगा । 

क्योकि श्रीमद भगवद्गीता में कहां गया है कर्मण्ए वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन अर्थात किए गए कर्म का अधिकार तो हमारे अधिकार क्षेत्र में है पर फल नहीं, हां पर मिलेगा जरूर भले ही आज नहीं तो कल या इस जन्म में नहीं तो फिर अगले जन्म में.. कर्मफल को हम यदि एक मील का पत्थर माने तो समयचक्र कभी न कभी उक्त स्थान पर हमे पहुंचायेगा जरूर और गंतव्य पर पहुंचकर उन कर्मफलों को हमको चखना भी पड़ेगा, अब सोचना है तो वो कर्मफल मीठे सुखद भी हो सकते है, और कड़वे तीखे दुखद, जिनके परिणाम हमारे द्वारा खुद ही अतीत में संचित किए जा चुके हैं ।


 

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

कोरोना-द्वितीय : एक समीक्षा

आजकल की परिस्थितियों से मन विचलित हो जाता है,कोरोना का प्रकोप मानव जाति पर ऐसा वीभत्स दिख रहा जिसमे प्रतिदिन किसी न किसी के बारे में हृदयविदारक समाचार मिलता है । 

ऐसी परिस्थितियों का सामना करने के लिए हम (ग़ैर सरकारी) व सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में आवश्यक परिवर्तन नही ला पाए या यूँ कहें कि बड़े व्यवसायिक घराने जनहित में व सरकार जितना कर सकती थी उतना नही कर पायी । हाल में कुछेक निजी अस्पतालों ने जो लूट मचायी है वो और भी दुखद व निंदनीय है शायद व्यवसाय मानवता पर पूर्ण रूप से हावी हो गया l सरकार के प्रयास इतनी विशालकाय जनसंख्या के सामने सामान्य ही कहे जा सकते । हाँ पूर्व की सरकारों की तुलना में ज़रूर उन्नत कार्य किया है पर अभी भी निर्वात व्याप्त है।

सरकार को स्वास्थ्य पर अधिक निवेश के बारे में ज़रूर सोचना होगा अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति  को भोजन तो सरकार ने  ज़रूर उपलब्ध कराया पर कोरोना काल में वेंटिलेटर पर उसकी पहुँच नही सम्भव करा पायी है जिसका कारण अत्यंत महँगा होना या आवश्यकता अनुरूप उपलब्ध न होना । सरकार ने वैक्सीन पर अच्छा कार्य किया पर उसकी उपलब्धता में और सुधार की आवश्यकता है । 

पर सरकार का कार्य संतोषजनक है, अभी हाल की परिस्थितियों को ग़र देखें तो भारत की दो वैक्सीन कोविशिल्ड व कोवैक्सिन ने अच्छा कार्य किया, १३ करोड़ लोगों में से केवल ७००० लोगों को ही संक्रमण हुआ है। जिस प्रति रक्षा प्रणाली को हम उम्मीद कर रहे थे उसमें सफलता मिली है परंतु अभी वैक्सीन सबको लग नही पायी जो दुखद है,पर उक्त न लग पाने के लिए सरकार ज़िम्मेदार नही है, क्यूँकि ये वैक्सीन का निर्माण आवश्यकता के अनुरूप नही हो पाया, इसमें अमेरिका आदि देशों से आने वाले कच्चे माल पर उनके द्वारा रोक भी एक वजह है । अमेरिका ऐसा नियंत्रण खुद द्वारा बनाए जाने वाली वैक्सीन के लिए कर रहा होगा या आजकल की वैश्विक माँग सामान्य से ज़्यादा हो जाने से भी उपलब्ध न करा पाने के कारण से ऐसा कर सकता।

अभी कुछेक लोग जिसमें विपक्ष कुछ अटपटे से सवाल कर रहा है कि जब वैक्सीन आवश्यकता के अनुरूप नही थी फिर अन्य देशों को निर्यात क्यूँ❓ये तो अजीब से बात है ऐसे ही अन्य देशों से हम कई  सामान आयात करते हैं तो वो भी रोक लगा दें तो परिणाम, हमारे लिए दुःखद ही होगा।अभी हाल में जैसे अमेरिका ने वैक्सीन के कच्चे माल जिसमें कल्चर मीडिया, कल्चर ट्यूब आदि पर रोक़ लगा दी परंतु वो भी ऐसा नही कर सकता क्यूँकि हम सब नाटो संगठन के सदस्य हैं उनको रोक हटानी ही होगी। अंततः सरकार रूसी स्पुतनिक , फ़ाइज़र, मॉडर्ना वैक्सीन की आपूर्ति करने जा रही है जिससे १ मई से सबको वैक्सीन संभव हो पाएगी ।

साथ में सरकार और निर्वाचन आयोग को भी चुनाव के मुद्दे पर पूर्व में सोचना चाहिए था, चुनाव लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए आवश्यक है पर लोग जब जीवित रहेंगे तो ही लोकतंत्र होगा न, ये ज़्यादा विचारणीय होना चाहिए।

इस संकट की घड़ी में सभी से अनुरोध है कि अत्यंत आवश्यक हो तो ही घर से निकले और मास्क हमेशा लगाए l 🙏

कोरोना विषाणु तीसरी लहर : भय का वातावरण ❓

 सम्मानित और स्नेहिल मित्रों आजकल कोविड की तीसरी लहर का अनदेखा भय व्याप्त हो रहा, अभी द्वितीय लहर ख़त्म भी नही हुई और समाचार चैनल वालों ने ए...